जब हमने ( ऋतू, बरखा, सीलीमा, बेलसन भैया- ये सभी हमारे संगवारी स्वास्थ्य साथी है I) तय किया था की, हमरे फिल्ड एरिया के अरगोती पंचायत के तप्ता नाम के एक पारा मे टी.बी. स्क्रीनिंग कॅम्प किया जाये I उसके अनुसार इस टी.बी. स्क्रीनिंग कॅम्प मे हमने इस पारा मे हर एक – एक घर जाकर भेट दी (जांच की) I इसी दरम्यान लोगो से बातचित से हमे एक ऐसे घर के बारे मे पता चला; जहा पे पीछले 4 साल से एक लकवा ( महीला) मरिज हैं I जब हम मितनिन दीदी के साथ मीलके उनके घर पोहचे तो घर बहार से बंद था I हमने आजू-बाजू के लोगो से बात की; तो बता चला घर के लोग खेत मे गये है I मितानिनी दिदी के मदत से हमने घर की कडी (कुंडी) खोलके के घर के अंदर गये तो दिवार के कोने मे एक करीब 75 साल की दादी घास की चटाई पे पडी थी I (बाद मे पता चला दादी का नाम – जुमको है I)
जब हम उनके पास गये तो उनकी हालत बहुत खराब दिख रही थी I पता नही कितने दिनो से नहाये नहीं थी, बालो मे गाठी गाठी बन गयी थी, उनके शरीर से पिशाब की बास आ रही थी I उनका बाया शरीर पूरा अकड गया था I दादी पीठ के बल सोयी तो थी पर पैर उपर उठे हूये पूरे अकड गये थे I बहोत कोशिश के बाद भी; वो सिधे पैर नहीं कर पायी I हम जो बात कर रहे थे, वो समज नहीं रही थी I कारण उनको सिर्फ कुडुक भाषा (यहा की बोलचाल की भाषा ) की ही जानकारी थी I जो हमे नहीं आती थी ….. फिर हमने मितानिन दिदी के मदत से उससे बात की, फिर भी वो बोल नही पा रही थी I जैसे तैसे उनका बी.पी. शुगर जांच की और वहा से निकल पडे I वहा से जैसे निकले 2-3 घर छोड के और एक घर में उसी दादी की छोटी बहन भी उनको भी लकवा की मरिज की तकलीफ थी I उन्हे 15-20 दिन पहले लकवा हुआ था I उनकी भी हमने बी.पी. शुगर जांच जांच की….. हम अपना स्क्रिनिंग पुरा करके ऑफिस वापस आये I स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर को ये बात बताई I किसी कारण उस सप्ताह मे हम उन मरीज को नहीं मिल पाये….
बाद मे मै अगले हफ्ते , डॉ. चेतन्य दादा, बेल्सन भैया के साथ उन 2 लकवा मरीज से मीलने (जाचं एवं उपचार के लिये) गये I चेतन्य दादा ने जब उन मरिज को देखा तब उनकी हालत वैसे ही थी I दादा ने उनकी जांच की और उपचार का प्लॅन बनाया I साथ मे उनको संगवारी से क्या मदत मील सकती हैं इसके बारे मे बात की और आगे के व्हिजीट का प्लॅन बानाया I
अगले दिन मै , बरखा, बल्सन भैया उपचार प्लॅन के अनुसार फिर से उनके घर गये I घर गये उस समय पे भी घर को बहार से कडी (कुंडी) लगा के दादीके परिवार वाले बहार गये थे I उनके आने का इंतजार किया I जैसे वो आये, दादी को घास की चटाई पे लिटा के घर के बहार आंगण मे लाये I उनके गाठ वाले बाल काटे, लंबे लंबे नाखून काटे, बहोत महिनो से एक ही जगह पे बैठने-सोने से उनके बॅक साईड (बैठने जगह) में बहोत बडा घाव हुवा था I जैसे तैसे दादी को नहलाया, उनकी ड्रेसिंग की, हमने जो गरम कपडे- सारी लेक गये थे वो जुमको-दादी को पहना दी I उनके परिवार वालो को ड्रेसिंग करना सीखाया, डायपर पहनाना सिखाया, एक महिने की दवा, डायपर, ड्रेसिंग-सामान दिया I
आज भी हम जब उनके व्हिजीट का प्लॅन के अनुसार उन्हे मिलने जाते है तो – पहले दिखने वाली वो दादी और आज दिखने वाली जुमको-दादी मे बहोत अंतर दिखता हैं! ये मुझे बहोत सुकून देता है !
हम सब के लिये ये बहोत ही नया अनुभव था……इस अनुभव से हम बहोत कूछ सिखे…… ये अनुभव कूछ खास था…!
– ऋतंभरा लोगडे, संगवारी साथी ने इस अनुभव को लिखा !
Tuzya आयुष्यतली सर्वात मोठी सिधोरी आहे….कारण स्वतः साठी सर्वच जगतात पण दुसऱ्यासाठी जगण्यातला एक वेगळा अनुभव असतो आणि तो अनुभव नेहमी समाधान देऊन जातो
Well done… Rutu…. We all are proud of you…
Amazing! Way to go.
बहुत ही सराहनीय काम है संगवारी के सभी सदसयो को बहुत बहुत बधाई